गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

कडवा सच

कवडस - अखबारी ख़बरों से दूर कडवा सच  

 नागपुर -

      कवडस एक आदिवासी आश्रम शाळा है . जहाँ २५० विद्यार्थी रहते  और पढ़ते है. सरकार यहाँ लाखों रूपये खर्च करती है  ताकि ये विद्यार्थी आगे चलकर किसी क्षेत्र की घुडदौड में पिछड़ न जाये. पर बड़ी अजीब बात है की ज़माने को शौचालय का महत्त्व बताने वाली सरकार की अपनी स्कूल में बच्चो को खुले में शौच को जाना पड़ता है. यहाँ शौचालय तो है पर पानी नहीं है. कुआं है, मोटर है पर बिजली नहीं है.
यहाँ तिन साल पहले दस कंप्यूटर आये थे, बच्चों को आई टी साक्षर बनाने. जिनमे से नौ की सिल अभी तक नहीं खुली. फिर से और नए पांच कम्पुटर आ गए है. कंप्यूटर है पर पढ़ानेवाला  कोई नहीं. जिस संस्था ने यहाँ कंप्यूटर पढ़ाने का ठेका लिया उनके शिक्षक ने भी कभी यहाँ मुंह नहीं दिखाया. दसवी कक्षा के बच्चों ने भी कभी कंप्यूटर को हाथ नहीं लगाया.
       यहाँ २५० विद्यार्थी और लगभग ५० कर्मचारी रहते है. पर मजे की बात यह है की ३०० लोगो के पीछे एक भी सफाई कर्मचारी नहीं है.
       १०० किशोरियों को शासन की नियोजनशुन्यता की वजह से आज आधारभूत स्वचछता  सुविधा से भी महरूम रहना पड़ रहा है. केवल चार सीटों वाले शौचालय में एक साधारण जीरो वोल्ट का बल्ब भी नहीं है. आधी रात को ये किशोरियों क्या जंगल में शौचालय के लिए जाएगी? उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किनकी होगी?
पोषक आहार से लेकर ऐसी अनेक ऐसी  सुविधाएँ है जिनका लाभ ये विद्यार्थी कागज़ पर ही ले रहे है.
दिल में एक टिस उठती है. शाहरुख खान के फिल्म का पोस्टर भी फट जाए तो खबर है, और किसी के सर पर आसमान भी फट जाए तो वो खबर नहीं बनती..

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