रविवार, 20 नवंबर 2011

Ravan

रावण
अब तेज बवंडर आँखों में
अंगारे दहकते सांसों में
दुनिया से मुझको डरना क्या
जंजीरों में अब बंधना क्या,
मै बह निकला मै बह निकला
अल्हड मदमस्त झरने सा 
मै बह निकला  मै बह निकला

तुमने सोचा मै दब जाऊ 
टुकड़े टुकड़े हो बंट जाऊ 
सच उलझाया तकरीरों में 
सच झुलसाया ताफ्तिशों में
चूलें हिलाने सत्ता की 
बागी मन इन्कलाब अब कह निकला....

देखें तो जरा है दम कितना
तेरे नापाक इरादों में,
एक और सबक बस जायेगा 
अब इतिहास की यादों में,
रास्ता है गाँधी का - जन उठा है आंधी सा,
जो टकराया वो ढह निकला.....

जब रात की चादर काली थी
उस रात ही दीवाली थी,
रामराज्य लौटाउंगा 
हसरत मैंने भी पाली थी, 
दस शीश तेरे कट जायेंगे, लंका तेरी जल जाएगी,
ए रावण ताकत पर मत इठला....

बुरे से मुझको बैर नहीं 
है बैर बुराई होने से,
झांकता है एक रावण 
मेरे भी मन के कोने से,
खुद से मेरा अब वादा है, पक्का मेरा इरादा है,
अपना रावण भी दूंगा जला ...
मै बह निकला मै बह निकला
अल्हड मदमस्त झरने सा 
मै बह निकला  मै बह निकला


 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें