शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

क्यूँ तिलमिलाए युवराज राहुल




आखिर संसद में अन्ना के आन्दोलन पर इतना आवेश और क्रोध कांग्रेस के राजकुमार को क्यों था. क्या वो सचमुच लोकतंत्र को खतरे में देख कर इतने अधीर और असंयमित हो गए थे. या फिर अपने राज्याभिषेक के सपने को एक जनांदोलन के सैलाब में तिनके की तरह बहता देख वो तिलमिला उठे. लोकतंत्र को ताक पर रखकर सिफारिश से कॉमनवेल्थ आयोजन समिति के अध्यक्ष बने कलमाड़ी ने जब देश की इज्जत तार तार की तब राहुल बाबा का खून नहीं खौला, जब रामदेवबाबा के लोकतान्त्रिक अधिकारों का हनन हुआ तब राहुल बाबा मम्मी के आँचल से बाहर नहीं आये. जब देश सड़कों पर अपने लोकतान्त्रिक अधिकार मांगने उतरा तो उनसे संवाद करने का नैतिक साहस युवराज के पास नहीं था. और अचानक से राहुल गाँधी लोकतंत्र की अस्मिता के ठेकेदार बन गए. वर्षों से इस देश को गाँधी नेहरु परिवार अपने बाप की जागीर समझता आ रहा है, आज जब अपने सपनों के रंग फीके हुए तो राहुल बाबा आपा खो बैठे. १२५ करोड़ भारतियों के सपनों से आप राजनेताओं ने पिछले ६४ साल से जो घिनौना खिलवाड़ किया है, उसके बाद अगर देश थोडा आक्रोश प्रदर्शित कर रहा है, तो राहुल जी समय आत्मावलोकन का है न की खीजने का.

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