सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

गर्मी

गर्मी सिर्फ वातावरण के तापमान की नहीं होती..
भारतीय परिप्रेक्ष्य में गर्मी कहाँ कहाँ है ...
इसका विवरण करती एक रोचक प्रस्तुति...
गर्मी
नम आँखों की दहक कहती है,
यहाँ बहुत गर्मी है....
बर्फ की चादर पर बारूद की महक कहती है,
यहाँ बहुत गर्मी है....
ठन्डे चूल्हे वालो के पेट की आग 
कारखानों की चिमनियो से 
धुआं बन निकलती है.
जहर घुली हवा कहती है, 
यहाँ बहुत गर्मी है....


वातानुकूलित कमरों में 
गर्म खबरों का सीधा प्रसारण ,
डोक्टरों की हड़ताल 
मरीज की मौत,
ठंडी से ठिठुरकर 
फुठपाथ पर मौत,
चिताओं की दहक कहती है,
यहाँ बहुत गर्मी है....

खेतों से बहती शीतल बयार 
झुलसी सी नजर आती है,
बाज़ार में कीमत नहीं मिलती 
माथे के पसीने को,
फसलों से उठती लपट कहती है,
यहाँ बहुत गर्मी है....
हर बात में गर्मी है...

मजहबी बलवों में गर्मी है,
फैशन के जलवों में गर्मी है. 
क्रिकेट के  खेल में गर्मी है. 
व्होलकर के तेल में गर्मी है.
मजहबियों के झंडे में गर्मी है,
पुलिस के डंडे में गर्मी है,
नेताओं की बातों में गर्मी है,
माफिया के हाथो में गर्मी है,
पूंजीपतियों के नोटों में गर्मी है,
मल्लिका के होठो में गर्मी है,
सरहद पर बन्दूको में गर्मी है,
नौकरशाहों के संदुको में गर्मी है,
नक्सलियों के जूनून में गर्मी है,
युवकों के खून में गर्मी है,

और इन सब से कहीं ज्यादा 
कलाम के स्वप्न नायक 
भारत के शैशव में गर्मी है. 

वक्त मिले तो कभी,
हठा कर देखना वक्त की ख़ाक..
इतिहास की चिंगारियां कहती मिलेगी 
यहाँ भी गर्मी है... 
 

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