रविवार, 7 मार्च 2010

जीवन

जीवन भर कुछ बेशकीमती पाने के लिए हम भागते रहते है,
और ऐसा कुछ पीछे छोड़ देते है, जो शायद अनमोल था.... 

जीवन

जीवन जलता जाता है,
करता चिर सुख की तलाश.
सुख जो क्षितिज सा दीखता पास 
ना दुरी ही घटती न मिटती आस.
मृग तृष्णा में मानव 
अंगारों  पर चलता जाता है..  
जीवन जलता जाता है............

भौतिकता के पीछे भागता 
बेचैन रातों में जागता,
 इर्ष्या का कांटा मन में 
पल- पल खलता जाता है .
जीवन जलता जाता है............

सभ्यता की संकुचित  होती वृत्तियाँ ,
प्रतिकूल वातावरण में 
केन्द्रित दुष्प्रवृत्तियाँ. 
स्वार्थ की काली बदली के पीछे 
मानवता का सूरज ढलता जाता है..
जीवन जलता जाता है............

चुपचाप संस्कृति भी अपने घुटने टेकती ,
खडी किनारे
विकृति को संस्कृति का 
मुखौटा ओढ़े देखती,
विभत्सता के आँचल में 
भविष्य का शैशव पलता जाता है.
जीवन जलता जाता है.......

उत्थान का पथ है कंटक ,
नभ में छाया तूफ़ान का संकट,
प्रयत्नों की उड़ान पर मनुष्य 
गिर गिर कर संभालता जाता है.
जीवन जलता जाता है............
..................................

  
 

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