गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

MGNREGS A fraud with Tribes

कागज पर करोड़ों खाक - नहीं बुझी पलायन की आग 



चिखलदरा-
मेलघाट से रोजगार की तलाश में होनेवाले पलायन का मुद्दा अख़बारों की सुर्ख़ियों से लेकर सरकारी महकमे की फाइलों को गर्म करता रहता है. कभी तो यह मुद्दा कागजों पर करोड़ों की योजनाओं  के खाके को जन्म देता है तो कभी एन जी ओ द्वारा भारी भरकम विदेशी फंडिंग का आधार बनता है. पर हकीकत के धरातल पर शाश्वत आजीविका के नाम पर आदिवासियों के साथ सिर्फ एक भद्दा मजाक ही हो रहा है.
रोजगार गैरंटी योजना में बड़े जोर शोर से पिछले साल मेलघाट  में लगभग १५ करोड़ रुपये खर्च कर पलायन पर लगाम लगाने का दावा किया गया. पर एक ही बरसात में सरकार के सारे दावों की कलई खुल गयी है. कहने को तो २०११- १२ में ६० करोड़ रुपयों के लगभग काम मेलघाट में प्रस्तावित है. दिवाली से होली तक काम देने का दावा करने वाला प्रशासन दिवाली के देड महीने बाद भी मेलघाट  के अधिकाँश गांवों में अब तक काम शुरू भी नहीं करवा पाया है. बच्चों की पढाई और अपने घर बार को छोड़ कर कई गांवों की आधी से ज्यादा आबादी रोजी रोटी की तलाश में पलायन कर चुकी है. 
जहाँ पिछले  साल तक  काम का तांत्रिक नियंत्रण करने वाले तांत्रिक सहायकों को काम के अनुपात में मेहनताना दिया जाता था, वहीँ अब उन्हें तयशुदा मानधन पर रखने की वजह से काम के प्रति सहायक तांत्रिक अधिकारियों की उदासीनता बढती जा रही है. हद तो इस बात की है जो योजना मजदूरों को सात दिन में काम के दाम देने का दावा करती है उसने पिछले चार महीने से अपने ही सहायक तांत्रिक अधिकारीयों का  मानधन  नहीं दिया है. अजगर की सुस्त रफ़्तार से सरकते प्रशासन ने अभी तक कई प्रस्तावित कामों के प्रस्तावों को अंतिम रूप नहीं दिया है. मेलघाट  के अधिकाँश ग्राम सेवक शहरी क्षेत्र के निवासी है. कार्यालीन काम के बहाने  पंचायत समिति मुख्यालय में अधिकाँश समय बिताने वाले ग्रामसेवकों के दर्शन महीने - महीने तक गाँववालों को नहीं होते. भीलखेडा , तेलखार, सोनापुर, बदनापुर, बाग़लिंगा , कोहाना, सलोना, जामली वन और धरमड़ोह जैसी ग्रामपंचायतों में जहाँ लगातार पलायन जारी है, वहीँ इस मुद्दे पर सामाजिक संगठनों से बात करते हुए खंड विकास अधिकारी काले अपने आप को कमजोर और परिस्थिति के हाथों मजबूर बताते है. 
इस साल बारिश काफी कमजोर रही है. समय रहते अगर झरनों और नालों में बहते पानी को रोकने के उपाय किये गए होते तो शायद रबी की फसल लेने कुछ किसान गांवों में रुक गए होते पर जब तक बोरी बांधों, पुराने बाँध दुरुस्ती जैसे काम फाइलों से निकलकर जमीं पर उतरते सभी नदी नालों का पानी ख़त्म हो चूका है. अब चाहे कृषि विभाग, सिंचन विभाग और जिला प्रशासन गेंद एक दुसरे के पाले में डालते रहें पर सच तो ये है की हमने इस साल की बस मिस कर दी है. मेलघाट का किसान फिर खुद को ठगा महसूस कर रहा है. 
प्रशासनिक कर्मचारियों की रूचि अकुशल कामों की बजाय कुशल कामों के बिलों में मिलने वाले कमीशन में ज्यादा है. मोजमाप पुस्तिका में दिखाए गए कामों के गुणवत्ता नियंत्रण में नियुक्त किये गए पालाक तांत्रिक अधिकारियों की भूमिका सिर्फ कागज़ तक ही है. नतीजतन बिना काम की गुणवत्ता और वास्तविकता की जाँच किये सारेभुगतान किये जा रहें है. जहाँ पहले भ्रष्टाचार सिर्फ बड़े नेताओं का काम समझा जाता था, वहीँ रोजगार गैरंटी योजना ने गाँव के जड़ मूल तक भ्रष्टाचार की जड़ें फैला दी  है.  बिना १० हजार खर्च किये किसी लाभार्थी को रोजगार गैरंटी योजना से कुंवा  नहीं मिलता, कई काम सिर्फ कागज पर होकर मजदूरी का हिस्सा मजदुर रोजगार सेवक और सरकारी कर्मचारियों में बंदरबांट हो जाता है.  
मेलघाट  से पलायन रोकने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद मजदुर की मुट्ठी सरकारी दावों की तरह ख़ाली ही है. क्या यह अपराध राष्ट्रद्रोह  से कम है?

1 टिप्पणी:

  1. भाई प्रभाकर मिश्रा,आपने रिपोर्ट तो अच्‍छी प्रस्‍तुत की मगर इसका समाधान तो आपके ही राज्‍य में अन्‍ना के रूप में मौजूद है । क्‍या ऐसा नहीं हो सकता कि रालेगन सिद्धि की राह पर ही चले मेलाघाट भी ...। एक बात और कि उस एनजीओ का नाम नहीं लिखा आपने जो विदेश से धन तो लेता है मगर आदिवासियों से धोखा कर रहा है ।-सुरेंद्र चतुर्वेदी,संपादक लीजेण्‍ड न्‍यूज़-www.legendnews.in

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