शनिवार, 3 जुलाई 2010

मुट्ठी भर आकाश....

मुट्ठी भर आकाश....

सूरज होने का 
इतना अभिमान क्यूँ है तुमको,
जबकि हर शाम के बाद 
अन्धेरा ही है.
दीप सही मै छोटा सा,
अँधेरे से लड़ने का अधिकार
मेरा भी है..

पंछी होने का 
इतना अभिमान क्यूँ है तुमको,
आकाश से जहाँ लौटना होता है,
वो टहनियों पर बसेरा ही है.
किट सही मै छोटा सा,
पंख है 
तो मुट्ठी भर आकाश मेरा भी है..

वैभव कीर्ति और सफलता 
आज होंगे सिर्फ तुम्हारे,
पर प्रयास तो मेरा भी है,
विश्वास मेरा भी है..
पंख है 
तो मुट्ठी भर आकाश मेरा भी है..

  

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