जिन्दगी में हमें दुसरो को नापने तौलने से फुर्सत नहीं मिलती...
मैंने थोडा वक्त निकालकर मै कौन हूँ?
ये सवाल खुद से पूछा.....
और जन्म से लेकर आज तक कोहम के पंक्तिबद्ध उत्तर..
कोहम
मै सुकोमल, शुद्ध, अव्यक्त
आवरण में पोषित.
मेरा यह अनुभव जगत
छोटा पवित्र सुरक्षित,
मेरी अभिव्यक्ति से टुटा
वह स्वप्न कि तरह..
कटु सत्य !
मै व्यक्त- पर अशक्त
पंखो के साथ फैलता विश्व.
नित नया भय- रोमांच,
पराभव - प्रयास - विकास
क्षितिज प्राप्ति कि मृग तृष्णा..
यह संसार, अप्राप्य- गूढ़ - अदभुत.
मै भी उसीका अंग
अपरिचित अन्तरंग
कौन मै?
जागृत जिज्ञासा..
सत्य कि पिपासा.
मिथ्य जगत चक्र
स्थल काल बद्ध भ्रम
मै यही
अथवा अज्ञात
मन बुद्धि से गहरा एक गोता,
ढूंढने चैतन्य कि पूंजी
गूढ़ कि कुंजी
जन्म मृत्यु से परे
उर्जा - प्रकाश - सत्य
पुर्नोत्तरित कोहम.
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