और ऐसा कुछ पीछे छोड़ देते है, जो शायद अनमोल था....
जीवन
जीवन जलता जाता है,
करता चिर सुख की तलाश.
सुख जो क्षितिज सा दीखता पास
ना दुरी ही घटती न मिटती आस.
मृग तृष्णा में मानव
अंगारों पर चलता जाता है..
जीवन जलता जाता है............
भौतिकता के पीछे भागता
बेचैन रातों में जागता,
इर्ष्या का कांटा मन में
पल- पल खलता जाता है .
जीवन जलता जाता है............
सभ्यता की संकुचित होती वृत्तियाँ ,
प्रतिकूल वातावरण में
केन्द्रित दुष्प्रवृत्तियाँ.
स्वार्थ की काली बदली के पीछे
मानवता का सूरज ढलता जाता है..
जीवन जलता जाता है............
चुपचाप संस्कृति भी अपने घुटने टेकती ,
खडी किनारे
विकृति को संस्कृति का
मुखौटा ओढ़े देखती,
विभत्सता के आँचल में
भविष्य का शैशव पलता जाता है.
जीवन जलता जाता है.......
उत्थान का पथ है कंटक ,
नभ में छाया तूफ़ान का संकट,
प्रयत्नों की उड़ान पर मनुष्य
गिर गिर कर संभालता जाता है.
जीवन जलता जाता है............
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