शुक्रवार, 5 मार्च 2010

गुजरात एक कलंक

गुजरात एक कलंक 
इंसान ढूंढे न मिले ,
मिले हिन्दू और मुसलमान.
राजनीती के बाजार में बिकते 
यहाँ अल्लाह और भगवान् .
भूकंप बाढ़ और सुखों में 
तड़पता गुजरात नंगों भूखों में .
बस्तियों की बर्बादी में 
आबाद हुए बस शमसान.
इंसान ढूंढे न मिले ,
मिले हिन्दू और मुसलमान...


हिन्दू का न मुसलमान का ,
लहू बहा है हिन्दुस्तान का ..
भगवे की न चाँद तारे की, 
हार हुई है भाईचारे की..

मंदिर का न मस्जिद की इमारत का,
सर झुका है जहान में भारत का..
अल्लाह की न भगवान् की,
यह प्रेरणा थी शैतान की..
ना ये धर्मयुद्ध था न जिहाद था,
ये केवल और केवल 
आतंकवाद था..


अब सोच कर क्या फायदा 
की सिलसिला कहाँ से चला था..
वो एक दौर था,
जब आग पानी में थी 
सारा गुलिस्तान जला था..
आबरू जाने से पहले  चाहिए की 
खुलें तन को ढँक दे,
नासूर बनने से पहले यही वक़्त है,
घाव पर मरहम रख दें ..

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें