शनिवार, 24 दिसंबर 2011

ANNA AGAINST CORRUPTION


डर जाऊं तुमसे 
क्योंकि तेरे हाथ सत्ता की बागडोर है,
हौसला तो मेरा ज्यादा बुलंद है,
और ईमान तेरा कमजोर है...
सैलाब इन्कलाब का 
तुझे लगता सड़क का शोर है,
सियासत की पतंग उड़ाने 
ये जस्बातों का झोंका नहीं ..
तेरा छप्पर उड़ जायेगा,
ये आंधियां पुर जोर है.....

Social forestry

मेडिकल वेस्ट बना पर्यावरण रक्षक


मेडिकल वेस्ट पर जहाँ पर्यावरण को प्रदूषित करने का आरोप हमेशा मंढा जाता है, पर अगर सृजनशीलता हो  तो यही मेडिकल वेस्ट पर्यावरण को समृद्ध बनाने का एक साधन बन जाता है. चिखलदरा के गौलखेडा बाज़ार में सामाजिक वनीकरण विभाग  के कार्यकर्ताओं ने एसा ही एक उदाहरण रखा है. सरकारी स्वास्थ केन्द्रों पर खली हुई सलाइन की बोतलों से रस्ते के दोनों तरफ लगे पौधों का सिंचन किया जा रहा है.

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

MGNREGS A fraud with Tribes

कागज पर करोड़ों खाक - नहीं बुझी पलायन की आग 



चिखलदरा-
मेलघाट से रोजगार की तलाश में होनेवाले पलायन का मुद्दा अख़बारों की सुर्ख़ियों से लेकर सरकारी महकमे की फाइलों को गर्म करता रहता है. कभी तो यह मुद्दा कागजों पर करोड़ों की योजनाओं  के खाके को जन्म देता है तो कभी एन जी ओ द्वारा भारी भरकम विदेशी फंडिंग का आधार बनता है. पर हकीकत के धरातल पर शाश्वत आजीविका के नाम पर आदिवासियों के साथ सिर्फ एक भद्दा मजाक ही हो रहा है.
रोजगार गैरंटी योजना में बड़े जोर शोर से पिछले साल मेलघाट  में लगभग १५ करोड़ रुपये खर्च कर पलायन पर लगाम लगाने का दावा किया गया. पर एक ही बरसात में सरकार के सारे दावों की कलई खुल गयी है. कहने को तो २०११- १२ में ६० करोड़ रुपयों के लगभग काम मेलघाट में प्रस्तावित है. दिवाली से होली तक काम देने का दावा करने वाला प्रशासन दिवाली के देड महीने बाद भी मेलघाट  के अधिकाँश गांवों में अब तक काम शुरू भी नहीं करवा पाया है. बच्चों की पढाई और अपने घर बार को छोड़ कर कई गांवों की आधी से ज्यादा आबादी रोजी रोटी की तलाश में पलायन कर चुकी है. 
जहाँ पिछले  साल तक  काम का तांत्रिक नियंत्रण करने वाले तांत्रिक सहायकों को काम के अनुपात में मेहनताना दिया जाता था, वहीँ अब उन्हें तयशुदा मानधन पर रखने की वजह से काम के प्रति सहायक तांत्रिक अधिकारियों की उदासीनता बढती जा रही है. हद तो इस बात की है जो योजना मजदूरों को सात दिन में काम के दाम देने का दावा करती है उसने पिछले चार महीने से अपने ही सहायक तांत्रिक अधिकारीयों का  मानधन  नहीं दिया है. अजगर की सुस्त रफ़्तार से सरकते प्रशासन ने अभी तक कई प्रस्तावित कामों के प्रस्तावों को अंतिम रूप नहीं दिया है. मेलघाट  के अधिकाँश ग्राम सेवक शहरी क्षेत्र के निवासी है. कार्यालीन काम के बहाने  पंचायत समिति मुख्यालय में अधिकाँश समय बिताने वाले ग्रामसेवकों के दर्शन महीने - महीने तक गाँववालों को नहीं होते. भीलखेडा , तेलखार, सोनापुर, बदनापुर, बाग़लिंगा , कोहाना, सलोना, जामली वन और धरमड़ोह जैसी ग्रामपंचायतों में जहाँ लगातार पलायन जारी है, वहीँ इस मुद्दे पर सामाजिक संगठनों से बात करते हुए खंड विकास अधिकारी काले अपने आप को कमजोर और परिस्थिति के हाथों मजबूर बताते है. 
इस साल बारिश काफी कमजोर रही है. समय रहते अगर झरनों और नालों में बहते पानी को रोकने के उपाय किये गए होते तो शायद रबी की फसल लेने कुछ किसान गांवों में रुक गए होते पर जब तक बोरी बांधों, पुराने बाँध दुरुस्ती जैसे काम फाइलों से निकलकर जमीं पर उतरते सभी नदी नालों का पानी ख़त्म हो चूका है. अब चाहे कृषि विभाग, सिंचन विभाग और जिला प्रशासन गेंद एक दुसरे के पाले में डालते रहें पर सच तो ये है की हमने इस साल की बस मिस कर दी है. मेलघाट का किसान फिर खुद को ठगा महसूस कर रहा है. 
प्रशासनिक कर्मचारियों की रूचि अकुशल कामों की बजाय कुशल कामों के बिलों में मिलने वाले कमीशन में ज्यादा है. मोजमाप पुस्तिका में दिखाए गए कामों के गुणवत्ता नियंत्रण में नियुक्त किये गए पालाक तांत्रिक अधिकारियों की भूमिका सिर्फ कागज़ तक ही है. नतीजतन बिना काम की गुणवत्ता और वास्तविकता की जाँच किये सारेभुगतान किये जा रहें है. जहाँ पहले भ्रष्टाचार सिर्फ बड़े नेताओं का काम समझा जाता था, वहीँ रोजगार गैरंटी योजना ने गाँव के जड़ मूल तक भ्रष्टाचार की जड़ें फैला दी  है.  बिना १० हजार खर्च किये किसी लाभार्थी को रोजगार गैरंटी योजना से कुंवा  नहीं मिलता, कई काम सिर्फ कागज पर होकर मजदूरी का हिस्सा मजदुर रोजगार सेवक और सरकारी कर्मचारियों में बंदरबांट हो जाता है.  
मेलघाट  से पलायन रोकने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद मजदुर की मुट्ठी सरकारी दावों की तरह ख़ाली ही है. क्या यह अपराध राष्ट्रद्रोह  से कम है?

रविवार, 20 नवंबर 2011

Ravan

रावण
अब तेज बवंडर आँखों में
अंगारे दहकते सांसों में
दुनिया से मुझको डरना क्या
जंजीरों में अब बंधना क्या,
मै बह निकला मै बह निकला
अल्हड मदमस्त झरने सा 
मै बह निकला  मै बह निकला

तुमने सोचा मै दब जाऊ 
टुकड़े टुकड़े हो बंट जाऊ 
सच उलझाया तकरीरों में 
सच झुलसाया ताफ्तिशों में
चूलें हिलाने सत्ता की 
बागी मन इन्कलाब अब कह निकला....

देखें तो जरा है दम कितना
तेरे नापाक इरादों में,
एक और सबक बस जायेगा 
अब इतिहास की यादों में,
रास्ता है गाँधी का - जन उठा है आंधी सा,
जो टकराया वो ढह निकला.....

जब रात की चादर काली थी
उस रात ही दीवाली थी,
रामराज्य लौटाउंगा 
हसरत मैंने भी पाली थी, 
दस शीश तेरे कट जायेंगे, लंका तेरी जल जाएगी,
ए रावण ताकत पर मत इठला....

बुरे से मुझको बैर नहीं 
है बैर बुराई होने से,
झांकता है एक रावण 
मेरे भी मन के कोने से,
खुद से मेरा अब वादा है, पक्का मेरा इरादा है,
अपना रावण भी दूंगा जला ...
मै बह निकला मै बह निकला
अल्हड मदमस्त झरने सा 
मै बह निकला  मै बह निकला


 

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

क्यूँ तिलमिलाए युवराज राहुल




आखिर संसद में अन्ना के आन्दोलन पर इतना आवेश और क्रोध कांग्रेस के राजकुमार को क्यों था. क्या वो सचमुच लोकतंत्र को खतरे में देख कर इतने अधीर और असंयमित हो गए थे. या फिर अपने राज्याभिषेक के सपने को एक जनांदोलन के सैलाब में तिनके की तरह बहता देख वो तिलमिला उठे. लोकतंत्र को ताक पर रखकर सिफारिश से कॉमनवेल्थ आयोजन समिति के अध्यक्ष बने कलमाड़ी ने जब देश की इज्जत तार तार की तब राहुल बाबा का खून नहीं खौला, जब रामदेवबाबा के लोकतान्त्रिक अधिकारों का हनन हुआ तब राहुल बाबा मम्मी के आँचल से बाहर नहीं आये. जब देश सड़कों पर अपने लोकतान्त्रिक अधिकार मांगने उतरा तो उनसे संवाद करने का नैतिक साहस युवराज के पास नहीं था. और अचानक से राहुल गाँधी लोकतंत्र की अस्मिता के ठेकेदार बन गए. वर्षों से इस देश को गाँधी नेहरु परिवार अपने बाप की जागीर समझता आ रहा है, आज जब अपने सपनों के रंग फीके हुए तो राहुल बाबा आपा खो बैठे. १२५ करोड़ भारतियों के सपनों से आप राजनेताओं ने पिछले ६४ साल से जो घिनौना खिलवाड़ किया है, उसके बाद अगर देश थोडा आक्रोश प्रदर्शित कर रहा है, तो राहुल जी समय आत्मावलोकन का है न की खीजने का.

मंगलवार, 29 मार्च 2011

बड़े दिन हुए

राह में भीड़ 
हर पड़ाव पर भीड़ 
भीड़ सपनों की, 
भीड़ अपनों की,
जाने क्यूँ सफ़र में 
है फिर भी तन्हाई .....

मंदिरों में पत्थर के बुत,
कार्यालय में कागज के पुलिंदे,
घर में सुविधाजनक उपकरण,
बड़े दिन हुए
माँ  ने पीठ नहीं थपथपाई....  

ऑफिस से घर तक 
चौखट और दीवारें ,
जहाँ से बाहर 
ना दे सुनाई और दिखाई.
बड़े दिन हुए ,
दोस्तों के साथ टपरी पर
चाय की चुस्की नहीं लगाईं...

माथे पर बल,
तनी हुई भौहें,
रंज तंज की बातें,
महत्वपूर्ण बातें,
बड़े दिन हुए 
बेबात के ठिठौली नहीं उड़ाई...

बेरंग से रंग, 
कभी फितरत के 
कभी सीरत के,
कुदरत के रंग जाने क्यों रूठे है,
इस बार होली में वो बात नहीं आई ..


रविवार, 9 जनवरी 2011

बातों बातों में....


दिल मस्त हवा के झोंके सा 
बह निकला बातों बातों में.....
मखमली खेतों से गुजरा 
बैठा छूक-छूक गाड़ी में, 
सपने भी हिचकोले खाते 
संग संग मेरी आँखों में, 
दिल मस्त हवा के झोंके सा 
बह निकला बातों बातों में.....

सर्दी की धुप सा अहसास
लिए रात की करवट थी,
तारे  बनकर छिटक गए अरमान,
जिन्हें सिरहाने रखकर सोता था रातों में,
दिल मस्त हवा के झोंके सा 
बह निकला बातों बातों में.....

मोटे मोटे सपने हों,
और छोटी छोटी खुशियाँ हो,
छोटा सा एक आँगन हो 
जिसमे थाम चलूँ 
तेरा हाथ मै हाथों में,
दिल मस्त हवा के झोंके सा 
बह निकला बातों बातों में.....