मुट्ठी भर आकाश....
सूरज होने का
इतना अभिमान क्यूँ है तुमको,
जबकि हर शाम के बाद
अन्धेरा ही है.
दीप सही मै छोटा सा,
अँधेरे से लड़ने का अधिकार
मेरा भी है..
पंछी होने का
इतना अभिमान क्यूँ है तुमको,
आकाश से जहाँ लौटना होता है,
वो टहनियों पर बसेरा ही है.
किट सही मै छोटा सा,
पंख है
तो मुट्ठी भर आकाश मेरा भी है..
वैभव कीर्ति और सफलता
आज होंगे सिर्फ तुम्हारे,
पर प्रयास तो मेरा भी है,
विश्वास मेरा भी है..
पंख है
तो मुट्ठी भर आकाश मेरा भी है..
अपने पर विश्वास इंसान को बहुत आगे ले जाता है, और मुठ्ठी भर नहीं पूरा आकाश आपका होता है।
जवाब देंहटाएं0 तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..] (Hilarious Moment.. इंडिब्लॉगर पर मेरी इस पोस्ट को प्रमोट कीजिये, वोट दीजिये
बहुत खूब!!
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