शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

अन्ना से ...


देखकर अचरज हुआ 

खुद मसीहा जुबान से फिर गया,

उदय होते होते सूरज 

काली घटाओं से घिर गया,

 

लता को खुद पर चढ़ता देख 

वृक्ष स्वयं टूट कर गिर गया ......

1 टिप्पणी:

  1. नमश्कार प्रभाकर जी! आपकी कविताएँ काफ़ी सुंदर है| आप सचमुच तारीफ के पात्र है| परंतु आज कल आपने लिखना क्यों बंद कर दिया? आपकी नयी कविताओं का इंतेजार रहेगा|

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